भगत सिंह को बचा सकते थे गाँधी जी ?

आजकल आपको देश के हर गली, मोहल्ले, कस्बों व शहरों मे गाँधी जी एवं भगतसिंह के बारे में ज्ञान बांटने वाले लोग मिल जाएंगे। लेकिन वास्तविकता मे ये गाँधी जी एवं भगत सिंह को कितना जानते हैं ये उन्हें खुद भी नहीं पता है। इन्हीं के नाम पर हर राजनीतिक दल अपनी-अपनी राजनीति चमकाने में लगा है। कोई इनकी विचारधारा के विरोधी है तो कोई समर्थक। देश में इन महापुरुषों की छवि बिगाडने की भरपूर कोशिश की जा रही है। आज देश में भगत सिंह बनने की बातें तो चाय की दुकान पर बैठा हर लफद्दूलाल करता है लेकिन उनके आदर्शो को कोई नहीं मानता। क्योंकि वो राजनीतिक दलों के सिखाये बताये ज्ञान के बल पर भगत सिंह बनना चाहते हैं। अपना दिमाग लगा कर खुद से कुछ पढ़ लिख कर कुछ जानने की कोशिश नहीं करते हैं।
सबसे दुर्भाग्यपूर्ण बात तो यह है कि देश का हर युवा समझता है कि हिंसक होकर लोगों को मार काट कर ही भगत सिंह बना जा सकता है। और यह वह अपने आप से नहीं समझता है उसे यह समझाया जा रहा है। इससे भी दुर्भाग्य की बात तो यह है कि भगतसिंह तो हर कोई बनना चाहता है लेकिन गाँधी कोई नहीं। सही भी है एक गाल पर थप्पड़ खा कर दूसरा गाल आगे कौन करना चाहेगा? लेकिन जिस किसी ने भी गाँधी को पढा है और समझा है वो गाँधी का एक प्रतिशत भी होना जरूर चाहेगा। भगत सिंह को फांसी हुई तभी से लेकर अब तक लोगों ने महात्मा गाँधी पर भगत सिंह को नहीं बचाने के आरोप लगाए हैं। जबकि सही मायनों में ऐसा बिल्कुल नहीं है।
1930 में गाँधी जी एवं इरवीन के बीच एक बैठक हुई इस बैठक को गाँधी इरवीन संधि कहा गया। इस बैठक में कई महत्वपूर्ण समझोते हुए। अब चुकी समझोते की सारी शर्तें अंग्रेजी सरकार के सामने पहले ही रख दी गई थी तो इसमे भगत सिंह की फाँसी का मुद्दा नहीं था। इसीलिए जब समझोता हुआ तो गाँधी जी ने यह शर्त नहीं रखी कि अगर भगत सिंह की फाँसी नहीं रुकी तो समझोता भी नहीं होगा। लेकिन फिर भी समझोता होने के बाद गाँधी जी ने इरवीन से कहा कि 'मुझे नहीं लगता कि इस समय मुझे यह मुद्दा उठाना चाहिए लेकिन फिर भी मैं चाहता हूं कि अगर आप देश का माहौल नियंत्रण में रखना चाहते हैं तो अंग्रेजी सरकार को भगत सिंह एवं उसके साथियो की सजा खत्म कर देनी चाहिए। इरवीन ने स्थिति भाप ली थी अंग्रेज़ी सरकार तक खबर पहुंच रही थी कि अगर भगत सिंह को फाँसी हुई तो हिन्दुस्तान में ऎसे हजारों भगत सिंह पैदा हो जायेंगे और अंग्रेजो का हिन्दुस्तान में रहना मुश्किल हो जाएगा। तो इरवीन ने गाँधी जी से कहा कि हम फाँसी तो नहीं रोक सकते लेकिन उसे कुछ दिनों के लिए टाला जा सकता है। इरवीन के एक बार में ही मान जाने पर गाँधी जी ने कहा कि क्या बिना शर्त के? क्यों कि गाँधी जी ने इरवीन के मंसूबे समझ लिए थे। इसपर इरवीन ने कहा कि नहीं भगत सिंह को एक माफी नामा लिखना होगा। क्यों कि इरवीन चाहता था कि एक बार यदि भगत सिंह माफी नामा लिख दे तो देश मे उसके खिलाफ़ लोगों को भड़का कर डर का माहौल बनाया जा सके और वे भगत सिंह को बिना कोई परेशानी के फाँसी पर चढ़ा सके। गाँधी जी ने स्तिथि को समझते हुए कहा कि मुझे कुछ समय चाहिये। इरवीन ने कहा कि जितना समय आप चाहे ले सकते है। गाँधी जी ने उसी समय अपने करीबी तेज बहादुर सपरू को टेलीग्राम कर उन्हें जैल जाकर भगत सिंह से इस बारे में विचार करने भेजा। इस पर भगत सिंह ने कहा कि मुझ एक के मर जाने पर हजारों भगत सिंह पैदा हो जाएंगे लेकिन यदि मेंने माफी मांगी तो देश के हजारों भगत सिंह जीते-जी मर जायेंगे। और भगत सिंह ने माफ़ीनामा लिखने से इन्कार कर दिया।
इसके बाद भी गाँधी जी ने भगत सिंह की फाँसी रोकने को लेकर कई बार वायसराय से मुलाकात की तथा पत्र लिखे। गाँधी जी एवं उनकी साथियों ने इसके लिए कानूनी रास्ते भी खोजे लेकिन सफलता हाथ नहीं लगी।
भगत सिंह को 24 मार्च 1931 को फाँसी होनी थी तो गाँधी जी ने लगातार 21 एवं 22 मार्च को वायसराय से मुलाकात की। 23 तारीक को उन्होंने वायसराय पर दबाव बनाते हुए अंतिम पत्र लिखा। तब अंग्रेजो को लगा कि हिन्दुस्तानी लोग भगत सिंह को फाँसी पर नहीं चढ़ाने देंगे। इसीलिए अंग्रेजो ने भगत सिंह को 24 मार्च की जगह 23 मार्च की शाम को उनके दो साथी सुखदेव एवं राजगुरु के साथ फाँसी दे दी। भगत सिंह की फाँसी रोककर हिंदुस्तानियों की नजर में अंग्रेजी सरकार स्वयं को कमजोर साबित नहीं करना चाहती थी। अंग्रेजो का मानना था कि अगर भगत सिंह को फाँसी नहीं दी तो हिंदुस्तानियों मे यह संदेश जाएगा कि अंग्रेजी हुकूमत झुक गई है और वे यह कतई नहीं होने देना चाहते थे।
 लेकिन गोर करने वालीं बात यह है कि आज देश मे भगत सिंह के नाम पर गाँधी जी को तो खूब गालियाँ दी जाती है लेकिन भगत सिंह के खिलाफ सरकारी गवाह बने शोभा सिंह और शादी लाल का नाम तक कोई नहीं जानता। क्योंकि इससे किसी का कोई राजनैतिक फायदा नहीं हो सकता। वो दोनों किसी राजनीतिक या साम्प्रदायिक दल से भी नहीं जुड़े थे। और आखिर में ये दोनों मूसलमान भी तो नहीं थे। यदि मूसलमान होते या किसी राजनीतिक या साम्प्रदायिक दल से जुड़े होते तो शायद ये भी आज सभी की जुबान पर होते। एक तथ्यात्मक बात यह भी है अँग्रेजों कि ओर से भगत सिंह के खिलाफ मुक़दमा लड़ने वाले वकील सूर्यनारायण शर्मा थे जबकि भगत सिंह के मुकादमे में उनका साथ देने वाले वकील कॉंग्रेस नेता आसफ अली थे।

पंकज (नीलोफ़र) 

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