1857 की क्रांति और सावरकर के विचार!
आज के दौर में इतिहास के सबसे विवादित व्यक्ति विनायक दामोदर सावरकर के विचारों पर मंथन करने की अति आवश्यकता महसूस होती है। जिस प्रकार गांधी, पटेल, भगत सिंह के विचारों को राजनीतिक दालों ने अपने हित के अनुकूल तोड़ा मरोड़ा हैं इतना ही अनुचित भाव और तरीके से सावरकर के विचारों को भी तोड़ मरोड़ कर पेश किया गया। इसीलिए आज हम बात करते हैं विनायक दामोदर सावरकर कालापानी जाने से पहले कैसे विचार रखते थे। 'विनायक दामोदर सावरकर' ने अपने जीवन में कई किताबें लिखी इनमे से एक है '1857 का स्वतंत्र समर' जो की उन्होंने 1909 में लिखी। इस किताब के बारे में जानने के लिए पढ़े विनायक दामोदर सावरकर की किताब जो रही 38 साल तक प्रतिबंधित इस पुस्तक में सावरकर अवध के नवाब के एक आज्ञा पत्र को केन्द्रित कर लिखते हैं कि नवाब ने कहा - हिन्दुस्तान के हिन्दुओं और मुसलामानों, उठो! स्वदेश बंधुओं, परमेश्वर की दी हुई सौगात में सबसे श्रेष्ठ सौगात स्वराज्य ही है। यह ईश्वरीय सौगात जिसने हमसे छल से छीन ली है उस अत्याचारी राक्षस को बहुत दिन पचेगी क्या? यह ईश्वरीय इच्छा के विरुद्ध किया गया कृत्य क्या जय प्