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विनायक दामोदर सावरकर की किताब जो रही 38 साल तक प्रतिबंधित - पंकज (नीलोफ़र)

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"1857 का स्वातंत्र्य समर" सन् 1909 में मराठी भाषा में प्रकाशित 'विनायक दामोदर सावरकर' द्वारा लिखित यह किताब जो 1909 में अपने प्रथम संस्करण के प्रकाशित होने के बाद से 1947 तक अंग्रेजी सरकार द्वारा प्रतिबंधित रहीं। लेकिन भारत से लेकर विदेशों तक इसकी इतनी माँग रही कि 38 वर्षों के लंबे प्रतिबंध के बावजूद, अनेकों भाषाओं में इसका गुप्त रूप से बार - बार प्रकाशन होता रहा।  यह किताब 1857 में हुई क्रांति के दृश्यों को जीवंत कर आपके दिल-दिमाग़ को हर पन्ने पर रोमांचित कर देती है। इस किताब में 1857 में हुई क्रांति के कारणों को तथा उसमें उस समय के राजाओं, सैनिकों, नवाबों, पण्डितों, मौलवियों आदि के द्वारा उठाए गए कदमों और  उनके द्वारा किए गए प्रयासों का बहुत बारीकी से विश्लेषण किया गया है। चाहे वह दिल्ली, मगध, पुणे, सतारा या ब्रह्मावद का अंग्रेजी हुकुमत में ज़बर्दस्ती अधिग्रहण हों या झाँसी जैसे स्वाभिमानी राज्य पर जबरन अधिग्रहण करने की कोशिश या फिर हिन्दुस्तानी सैनिकों को दिये जाने वाले कारतूसों में गाय और सुअर की चर्बी का उपयोग कर उनका धर्म भ्रष्ट करने की कोशिश। इस किता