और कितनी निर्भया???
यह समाज आज पुरी तरह सड़ चुका है। मर तो बहुत पहले ही गया था मगर अब इस इस समाज का मुर्दा सड़ने लगा है। आज चारों ओर इस सड़न की बू फैली हुई है। यह बू एक महामारी की तरह फैल रही है जो हर किसी को संक्रमित करती जा रही है।
इस सड़न से फैल रहे संक्रमण से कोई विरला ही अछूता रहा होगा। जो स्वयं को इस भयानक संक्रमण से बचा सका हो। जिसने आज भी सम्वेदनशीलता, इंसानियत, सहिष्णुता न खोई हो। जिसकी आत्मा आज भी जागृत हो ऐसा मनुष्य इस समाज में खोजने पर भी मिलना असंभव सा प्रतीत होता है।
अनपढ़ गँवारों से लेकर पढ़े-लिखे बुद्धिजीवियों तक किसी में वह भावनात्मकता, शालीनता, सम्वेदनशीलता नजर नहीं आती। आज के पढ़े लिखे वर्ग से तो अनपढ़ वर्ग कई मायनों में बेहतर नजर आता है, अनपढ़ होते हुए भी कुछ मायनों में शिक्षित नजर आता है। मुख्यतः पढ़े-लिखे दो प्रकार के होते हैं, एक होते हैं साक्षर और दूसरे होते हैं शिक्षित। आज साक्षर तो इस देश की लगभग 85 प्रतिशत आबादी होगी किन्तु शिक्षित 1 प्रतिशत भी नहीं यही इस डेढ़ सौ करोड़ की आबादी वाले देश का दुर्भाग्य हैं।
यहाँ शिक्षित होने का अर्थ बड़े-बड़े विश्वविद्यालयों से सिर्फ उपाधियाँ प्राप्त कर लेना नहीं है। विश्वविद्यालयों की उपाधियां तो आज इस भ्रष्ट समाज में आपको कोड़ियों के दाम मिल जाएंगी। मगर जो शिष्टाचार, सभ्यता, संस्कार, सम्वेदनशीलता एक शिक्षित व्यक्ती में होनी चाहिए जो साक्षर लोगों को शिक्षित बनातीं हैं वह आज विरले ही नजर आती है। असल शिक्षा का अर्थ है आत्मचिंतन करना। मगर इस सड़े हुए साक्षर समाज में कोई आत्मचिंतन करना नहीं चाहता, हर कोई एक दुसरे पर आरोप प्रत्यारोप करने मे लगा हुआ है जो स्वयं को और स्वयं के विचारों को सर्वश्रेष्ठ साबित करना चाहता है।
दिखावटी अपनापन और मन में कुंठा रखने वाले ये साक्षर लोग मौका पाने पर अपने सगे संबंधियों पर भी घात करने से बाज नहीं आते। आज इस समाज में नफ़रत का जहर इस कदर घुल गया है कि यह समाज अपने आप ही खत्म होने लगा है।
राम, कृष्ण, बुद्ध, गाँधी का यह पवित्र और महान देश जिसकी महानता का गुणगान दुनिया किया करती थी आज कुंठा और नफ़रत के घावों से इस तरह भर गया है कि इसपर उंगली तक रखने की जगह भी नहीं। इस समाज के घावों से अब खुन नहीं निकालता अब इन घावों से सड़ा हुआ पस निकलता है जिसकी बू एक संक्रमण फैलाती जा रही है। जो कोई भी इस संक्रमण को रोकने की कोशिश करता है वहीं इसकी चपेट में आ जाता है।
यह सड़न इतनी ज्यादा बढ़ गई है कि आज यह समाज अपराधियों, बलात्कारियों को सजा देने की मांग भी धर्म और समुदाय को देखकर आरक्षण के आधार पर करता हैं। अगर पीड़ित हिन्दू है और बलात्कारी मुसलमान तो इस विचारहीन सड़े हुए समाज का खुन खोल जाता है इसकी आत्मा बलात्कारियों को सजा दिलाने के लिए चीत्कार उठती है। ऐसे मामलों में वह अदालतों तक जाने में विश्वास नहीं करता वह यह भी नहीं जानना चाहता कि जिसपर आरोप लगे हैं वह असल अपराधी हैं भी या नहीं। ऐसे मामलों में वह सड़क पर ही न्याय करने का पक्षधर होता है या पुलिसिया एनकाउंटर का समर्थन करता है और इसे ही न्याय की परिभाषा समझने लगता है। ऐसा ही एक मामला 2019 में हैदराबाद में सामने आया जिसमें एक नर्स के बलात्कार के 4 आरोपी जिसमें 3 हिन्दू और एक मुसलमान का पुलिस द्वारा एनकाउंटर कर दिया गया जिसपर इस सड़े गले समाज ने खुब तालियां बजायी। तालियां इसलिए भी बजायी क्योंकि इस मामले को टीवी चैनलों और सोशल मीडिया द्वारा उस एक मुसलमान के नाम पर प्रचारित किया गया था। मगर मई 2022 में इस मामले में फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इस पूरे मामले को फर्जी करार देते हुए 10 पुलिस कर्मियों पर दंडात्मक कार्यवाही सुनिश्चित की । किन्तु यह समाज इस खबर से वंचित रहा।
यहीं दूसरी तरफ अगर बलात्कारी और पीड़ित दोनों हिन्दू समुदाय के हो तो यह समाज न्यायालयों में जा कर न्याय की मंशा रखता है मगर आवाज नहीं उठाता एक दम चुप हो जाता है। एसी खबरों पर कोई ध्यान नहीं देता। इसके आगे अगर पीड़ित मुस्लिम और बलात्कारी हिन्दू समुदाय से आता हों और अगर वह इसके पसंदीदा साम्प्रदायिक संघठन या राजनीतिक दल से आता हो तो यह समाज मन ही मन खुश होता है और कहीं कहीं तो खुशी जाहिर भी कर देता है और तो और बलात्कारियों को संरक्षण भी देता है और उनका पक्ष भी लिया जाता है। ऐसे मामलों में इन्हें बलात्कारी गलत नजर नहीं आता। यहाँ ये समाज सदियों पुराना सुना सुनाया इतिहास पढ़ाने लगता जिसके बारे में इसे कुछ नहीं पता। और इस तरह के सत्ता संरक्षित बलात्कारियों की रिहाई पर यह समाज मिठाइयाँ बाँटता है, फुल माला से बलात्कारियों का स्वागत करता हैं।
इसके अलावा अगर बलात्कारी इस समुदाय के पसंदीदा दल का कोई नेता या किसी नेता का बेटा हो तो यहां इन्हें षडयंत्र नजर आने लगता है और इनकी सारी सहानुभूति पीड़ित की जगह आरोपियों को प्राप्त होती है। ये समाज इतने पर ही नहीं रुकता इसे पीड़ित और उसका परिवार ही दोषी नजर आता है। ऐसा ही मामला सामने आया उत्तराखंड में जहाँ अंकिता भण्डारी नामक 19 वर्षीय लड़की का बलात्कार कर उसकी हत्या सत्ताधारी पार्टी के पूर्व मंत्री के बेटे द्वारा कर दी गई। अंकिता भण्डारी इस नेता के रिज़ॉर्ट में रिसेप्शनीस्ट का काम करती थी। मगर इस पर आर एस एस के एक वरिष्ठ नेता ने अपने फेसबुक पेज पर लिखा कि इस मामले में लड़की के पिता और उसका भाई असल दोषी हैं जिन्होने उसे वहां नौकरी करने जाने दिया। इनके अनुसार अब कोई लड़की नौकरी ही न करे!
अगर अंकिता भंडारी नहीं जाती तो कोई और लड़की वहां काम करती उसके साथ यह घटना हुई होती। मगर यहां इन्होंने अपराधी की जगह पीड़ित और उसके परिवार को ही दोषी ठहरा दिया। इतना ही नही प्रशासन ने भी आनन-फानन में रिज़ॉर्ट पर बुलडोज़र चलाकर और संदिग्ध कमरें को आग के हवाले कर सबूत मिटाने में अपराधियों का पूरा सहयोग करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। पिछले एक महीने की सीसीटीवी फुटेज भी डिलीट कर दी गई। मगर इस समाज से एक शब्द न निकला।
31 दिसंबर की रात को दिल्ली में एक लड़की कुछ शराबियों की चार पहिया गाड़ी से टकरा कर गाड़ी में फंस जाती है और वे शराबी उसे 11 किलोमीटर तक घसीटते है उसके शरीर की हड्डियां तक घिस जाती है मगर आरोपी के सत्ताधारी पार्टी का कोई पदाधिकारी होने की वज़ह से इस देश का तथाकथित मीडीया और यह सड़ा हुआ समाज उस लड़की का ही चरित्र हनन करने में लगे हुए हैं। मीडिया और लोगों को उस लड़की के बारे में सारी जानकारी मिल गई, कब घर से निकली, किससे मिली, कितनी शराब पी, किससे झगड़ा किया, कितने बजे पार्टी से बाहर निकली, लड़की की पूरी दिनचर्या का सीसीटीवी फुटेज इनको मिल गया मगर उन गुंडों की जानकारी किसी ने नहीं निकाली की वो कहां गए थे कितने नशे में थे इसकी किसी को कोई जानकारी नहीं और उनके बारे में न ही कोई जानना चाहता है। कुछ लोगों ने इसको 2012 में दिल्ली में हुए निर्भया कांड की तरह भी माना। कई प्रकार के आरोप लगे मगर कोई संतुष्टि दायक जांच नहीं हुई कोर्ट ने इसे गैर इरादतन हत्या माना।
आज एक नहीं जाने कितनी निर्भया के बारे में हमे देखने-सुनने को मिलता है। मगर यह समाज चुप रहता है क्यों कि प्रतिरोध करने की लिये इन्हें कोई कहता नहीं है। आज इस समाज में कोई सुरक्षित नहीं।
इस सड़े हुए संक्रमित समाज की स्तिथि इतनी दुर्भाग्यपूर्ण है कि जब तक इस समाज का प्रत्येक व्यक्ति खुद से कुछ कड़वे अनुभव नहीं कर लेता तब इस समाज में रोज कई लड़कियों को निर्भया होने से कोई नहीं बचा सकता और तब तक इस समाज का चेतन होना भी मुश्किल है।
ऐसा इसलिये हो रहा है क्यों कि यह समाज अपनी स्वयं की सोचने विचारने की क्षमता खो चुका है। यह समाज अब अपनी समझ के अनुसार नहीं बल्कि सामाजिक संचार माध्यम यानी सोशल मीडिया द्वारा प्राप्त जानकारी और ज्ञान के आधार पर चलता हैं। यह सामाजिक विषयों में अपने निर्णय स्वयं नहीं लेता इसे सोशल मीडिया द्वारा जो सीखा दिया जाता है वहीं इसका निर्णय होता है। राम, कृष्ण, बुद्ध और गाँधी के जिस देश को दुनिया सहिष्णुता, धार्मिक सद्भावना, कर्तव्यनिष्ठा, उच्च सम्वेदनशीलता के लिए जानती और इस देश से सीख लेती थी आज दुनिया के सामने इस देश की शाख गिराने में यह समाज कोई कसर नहीं छोड़ रहा है।
आज यह समाज एक सड़े हुए मुर्दे से ज्यादा कुछ नहीं। अब इस समाज को आत्मचिंतन करने की अति आवश्यकता है।
- पंकज (नीलोफ़र)
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