गाँधी ने किया पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपये दिलाने के लिए अनशन?

जब भी भारत के राजनीतिक इतिहास की बात आती हैं आपने अक्सर सुना या पढ़ा होगा कि हमारे देश के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी नें 1948 में पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपए दिलाने के लिए अनशन किया था। लेकिन यह कितना सच है यह जानने की कोशिश शायद आपने कभी नहीं की होगीं। क्योंकि इतना सुनने भर से कहीं ना कहीं आपके विचार इस बात से सहमत होने लगते हैं। क्योंकि आज की भारतीय राजनीति में राजनीतिक दलों ने अपने अपने फायदे के लिए महापुरुषों की छवि को धूमिल करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। उन्हें पता है कि अगर इतिहास को झूठलाया नहीं गया तो वो आज की राजनीति में अपनी जगह नहीं बना पाएंगे और इसीलिए महापुरुषों के योगदानों को भुला कर उनके बारे में भ्रामक भ्रांतियां फैलाई गई और उन्हें बदनाम करने की भरसक कोशिशें की गई। तो ऐसे ही एक मुद्दे पर आज बात करते हैं जिसमें गाँधी जी पर पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपये दिलाने का आरोप है!

 हिन्दुस्तान और पाकिस्तान के बँटवारे के कुछ समय बाद तक दोनों देशों का एक ही रिजर्व बैंक था। और सरकारी आंकड़ों के अनुसार आज़ादी के बाद उसमे कुल 400 करोड़ रुपये थे। हमारे यहां बँटवारे का मतलब होता है माता पिता की जो भी सम्पति हो उसमे बराबर का हिस्सा होना। और इसी के अनुसार अंग्रेजों द्वारा बनाई गई एक कमिटी द्वारा इन 400 करोड़ में से 75 करोड़ रुपये पाकिस्तान के हिस्से मे गए या देने का फैसला किया गया। अब 75 में से 20 करोड़ रुपये शुरू में ही पाकिस्तान को दे दिया गया। बांकी के 55 करोड़, 3 करोड़ प्रति माह के अनुसार देने का वादा किया था। लेकिन कुछ ही दिनों में पाकिस्तान द्वारा कश्मीर पर हमला कर दिया था। जिसके बाद भारत सरकार की केबिनेट बैठक हुई। जिसके सदस्य नेहरू, पटेल, वी. डी. देशमुख, श्यामा प्रसाद मुखर्जी आदि थे। इस कैबिनेट ने पाकिस्तान को बांकी के 55 करोड़ रुपये नहीं देने का फैसला लिया। और यह सब कुछ जब चल रहा था तभी राजनीतिक दुराग्रह के चलते दोनों देशों में साम्प्रदायिक दंगे भड़के हुये थे और कई लोगों को जान माल का नुकसान झेलना पड़ रहा था। इसी से दुखी होकर महात्मा गाँधी ने दोनों देशों की सरकारों को शांति बहाल करने का आग्रह किया। लेकिन जब यह सब ख़त्म नहीं हुआ तो गाँधी जी ने अचानक आमरण अनशन की घोषणा कर दी कि जब तक दोनों देशों की सरकारें जगह-जगह होने वालीं हिंसाओं को रुकवा नहीं देती तब तक मैं आमरण अनशन करूंगा। "देश में साम्प्रदायिक दंगों से होती बर्बादी को देखने से बेहतर तो मौत है" । जो उन्होंने शान्ति बहाल होने के बाद ही तोड़ा। गाँधी जी के अनशन का पाकिस्तान को दिये जाने वाले 55 करोड़ रुपये से कोई लेना-देना नहीं था। और यही उनके जीवन का आखरी अनशन था जो पांच दिनों तक चला था। 13 से 18 जनवरी तक उनका अनशन चला था और 30 जनवरी को नाथूराम गोडसे द्वारा उनकी हत्या कर दी गई। 

 लेकिन गाँधी जी की हत्या के बाद गोडसे ने अपनी ओर से सफाई देते हुए अपने एक बयान में कहा था कि उसने गाँधी जी की हत्या उनके द्वारा पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपये दिलाने की ज़िद करने की वज़ह से की थीं। लेकिन कोर्ट ने उसके इस बयान को झूठा बता कर खारिज कर दिया था। और गोडसे के इसी झूठे बयान को उसकी विचार धारा के लोगों ने खुब प्रचारित किया और लोगों की नजरों में गाँधी जी को बदनाम करने की कोशिशें की। जिसे आज की राजनीति ने गोडसे का समर्थन करते हुए भरपूर तुल दिया। लेकिन सच को कोई झुठला नहीं सकता वो कभी न कभी ज़रूर सामने आता है।

- पंकज (नीलोफ़र) 

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