तानाशाह मोहन दास करमचंद गाँधी ?

गाँधी जी को अफ्रीका में 7 साल हो चुके थे। वहा चल रहा बोअर युद्ध भी समाप्त हो गया था लोगों में भाईचारा पैदा हो गया था। स्कूल और पुस्तकालय खुल गए थे। छोटा मोटा अस्पताल भी चल रहा था। लोग शिक्षा के महत्व को समझने लगे थे। उन्होंने सोचा कि उनका काम पूरा हो गया और  यहा जब कुछ करने को ही नहीं बचा तो हिन्दुस्तान लौट जाना ही उचित होगा। आखिर अपने देश को भी मेरी जरूरत है। यही सब सोचते हुए उन्होंने भारत लौटने का निर्णय लिया।
यह खबर जब नेटाल के लोगों तक पहुंची तो उन्होंने गाँधी जी के सम्मान में एक विदाई समारोह का आयोजन किया। ज्यादातर लोग अपनी हैसियत और श्रद्धा के हिसाब से उपहार भी लाए थे। उपहार में अब्दुल कादिर ने हीरे का पिन दिया था, रूस्तम जी पारसी ने सोने की माला, सावरन का बटुआ तथा 7 सोने के सिक्के दिए। यह सब लेना गाँधी जी को ठीक नहीं लग रहा था वो सारे उपहार लेकर मेज पर रखते जा रहे थे। दादा अबदुल्ला कंपनी की ओर से सोने की घड़ी दी गई। उसके बाद नेटाल भारतीय समाज की ओर से हीरे की एक अंगुठी दी गई। गुजराती हिन्दुओ की तरफ़ से सोने का एक वजनी हार कस्तूर बाई को दिया गया था। कस्तूर बाई को एक और सोने का  50 गिन्नीयों का हार दिया था। कुछ मजदूर लोग सकुचाते हुए हाथों में फूलों की माला लिए आये थे जिन्हें देखते ही गाँधी जी ने अपनी गर्दन बढ़ा दी। उनके चेहरों पर खुशी की इबारत आ गई थी।
उस रात गाँधी जी रात भर सो नहीं पाये थे उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि वे इतने कीमती उपहारों का क्या करेंगे? अगले दिन गाँधी जी ने सारे घर वालो को एक साथ बुलाया। बच्चे पहले ही आ गये थे। गाँधी जी ने बच्चों से कहा कि मै रात भर सो नहीं पाया। मेरी समझ में नहीं आ रहा कि इन उपहारों का मैं क्या करूंगा। ये उपहार मुझे सेवा के बदले में मिले है और मैं सेवा बेचना नहीं चाहता। मैं सोचता हूं कि इन्हें भारतीय समाज को सौंप दु। गाँधी जी के सबसे बड़े बेटे हरिदास ने कहा कि जेसा आप उचित समझे। गाँधी जी जानते थे कि बच्चे तो मान जाएंगे लेकिन कस्तूर बाई को समझाना मुश्किल होगा। तो गाँधी जी ने बच्चों से कहा कि तुम अपनी बा को समझाने में मेरी मदद करोगे। इस पर मणि दास ने कहा कि बा तो जेवर पहनती ही नहीं है वे इनका क्या करेंगी?
कुछ देर बाद कस्तूर बाई आई तो गाँधी जी ने कहा कि ये कीमती उपहार हमारे किस काम के?  हम इन्हें वापस कर देते हैं। बच्चे भी मेरी बात से सहमत हैं। कस्तूर बाई को बात पसंद नहीं आई और वे नाराज़ हो कर कहने लगी कि ना तुम्हें इन जेवरों की जरूरत है ना ही बच्चों को ... मै यह भी जानती हू की तुम मुझे यह पहनने भी नहीं दोगे। यहा तुम्हारा राज चलता है। जो तुम्हारी मर्जी होगी तुम वहीं करोगे। तुम्हारी तानाशाही सिर्फ घर के लोगों पर ही चलती है। लेकिन कल को मेरी बहुएं आयेंगी तो वे क्या पहनेंगी? तुम मेरे बच्चों के हाथ में चीमटा पकडा कर उन्हें सन्यासी बनाना चाहते हो। ना उन्हें पढाओगे लिखाओगे ना हि कोई धन दौलत इनके लिये छोडोगे। तो ये करेंगे क्या? इन उपहारों के अलावा तुम्हारे पास रखा ही क्या है। मैं इन्हें वापस नहीं करूंगी। गाँधी जी ने समझाते हुए कहा देखो कस्तूर बच्चों की शादी आज नहीं हो रही है जब होगी तब मैं नहीं बनाऊंगा क्या। कस्तूर बाई ने बिगड़ते हुए कहा कि मैं तुम्हें अच्छी तरह जान गई हू तुम नहीं बनवाओगे। और कस्तूर बाई की चिन्ता ठीक भी थी अपने बच्चों के बारे में कौनसी माँ नहीं सोचती है। उन्होंने कहा कि अगर तुम देना चाहते हो तो जो तुम्हें मिला है वह दो। मुझे दिया गया उपहार मैं नहीं लौटाउंगी। लेकिन गाँधी जी की ज़िद एवं तर्को के आगे उनकी एक न चली। कस्तूर बाई को लगा कि वे अपने पति के द्वारा ठग ली गई है। बहुत सोच विचार के बाद गाँधी जी ने सारे उपहार अफ्रीकन कोआपरेशन बैंक को सौंप दिये । और एक पत्र लिखकर उसमे कहा कि जब भी नेटाल भारतीय काँग्रेस के पास खर्च करने के लिए पैसा ना हो तो यह जेवर या इसके मूल्य जितनी राशी नेटाल भारतीय काँग्रेस को दें दी जाए।

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