आखिर क्यों भीष्म पितामह की माँ गंगा ने अपने ही सात पुत्रों को मार डाला था?
एक बार की बात है, गंगा अपने कारण ब्रह्मा द्वारा महाभिशक़ को दिए गए श्राप के बारे में सोच रही थी कि तभी उन्होंने स्वर्ग से आठों वसुओं को उतरते देखा। देखते ही उन्होंने सोचा कि ऐसा क्या कारण आन पड़ा कि वसुओं को मृत्यु लोक में आना पड़ा। गंगा के मन में बड़ा कौतूहल हुआ। उन्होंने वसुओं से पूछा- वसुओं! स्वर्ग में सब कुशल तो है ना? तुम सब एक साथ पृथ्वी पर क्यों जा रहे हो? वसुओं ने कहा - माता हम सब मृत्युलोक मे जाकर पैदा हो ऐसा हमे शाप मिला है। हमसे अपराध तो हुआ था लेकिन इतनी कड़ी सजा मिले इतना बड़ा नहीं हुआ था। एक दिन महर्षि वसिष्ठ गुप्त रूप से संध्या वंदन कर रहे थे, हमने उन्हें पहचाना नही और बिना प्रणाम किये ही आगे बढ़ गये। उन्होंने सोचा कि हमने जान बूझकर मर्यादा का उल्लंघन किया है, और उन्होंने हमे मनुष्य योनि मे जन्म लेने का शाप दे दिया। वे ब्रह्मवेत्ता महापुरुष है, उनकी वाणी कभी झूठी नहीं हो सकती। परंतु माता! हम किसी मनुष्य स्त्री के गर्भ से जन्म नहीं लेना चाहते हैं। अब हम आपकी शरण में है और आपसे प्रार्थना करते हैं कि आप हमे अपने गर्भ में धारण कर अपना शिशु बनाये।
यह बात गंगा के मन में बैठ गई और उन्होनें पूछा कि तुम लोग अपना पिता किसे बनाना चाहते हो। इस पर वसुओं ने कहा कि महाप्रतापी प्रतीप के पुत्र महाराज शान्तनु को ही हम अपना पिता बनाना चाहते हैं। गंगा ने कहा ठीक है मैं भी महाराज शान्तनु को प्रसन्न करना चाहती हूं। मेरी ही वज़ह से उन्हें मृत्युलोक में जन्म लेना प़डा हैं। वसुओं ने कहा माता एक बात और है। हम लोग ज्यादा दिनों तक मनुष्य योनि मे नही रहना चाहते इसीलिए जन्म लेते ही आप हमें अपने जल में डाल देना। इससे ऋषि का शाप भी पूरा हो जाएगा और शीघ्र ही हमारा उद्धार भी हो जाएगा। इस पर गंगा ने कहा कि ठीक है लेकिन महाराज शान्तनु का मुझ से पुत्र उत्पन्न करना व्यर्थ नहीं होना चाहिए। कम से कम एक पुत्र तो जिवित रहना ही चाहिये। इस पर वसुओं ने कहा कि ठीक है हमारा सबसे छोटा भाई कुछ दिनों के लिए पृथ्वी पर रह जाएगा और हम लोग अपने - अपने तेज का आठवां अंश उसे दे देंगे। लेकिन उसका वंश नहीं चलेगा। गंगा ने उनकी बात मान ली।
इसके बाद गंगा ने महा प्रतापी प्रतीप के पुत्र महाराज शान्तनु से विवाह कर लिया और एक के बाद एक आठ पुत्रों को जन्म दिया लेकिन वसुओं को दिए गए वचन के मुताबिक गंगा ने सात पुत्रों को जन्म लेते ही अपने जल मे बहा दिया और आठवें पुत्र के जन्म के बाद गंगा महाराज शान्तनु को छोड़कर चली गई।
गंगा और शान्तनु के इसी आठवे पुत्र का नाम आगे जाकर भीष्म हुआ।
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